
🌕 करवा चौथ की पौराणिक कथा (Karwa Chauth Ki Kahani in Hindi)
भारतवर्ष में स्त्रियों के लिए करवा चौथ का व्रत सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र व्रतों में से एक माना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से सुहागिन स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु, सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए किया जाता है। करवा चौथ का व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच अटूट प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक भी है।
करवा चौथ का अर्थ होता है – “करवा” अर्थात मिट्टी का बर्तन (जो पूजा में उपयोग होता है) और “चौथ” अर्थात चौथा दिन। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएँ सुबह सूर्योदय से पहले उठकर सर्ग (खाना) ग्रहण करती हैं और दिनभर निर्जल व्रत रखती हैं, अर्थात न तो जल पीती हैं और न अन्न खाती हैं। वे रात में चाँद देखकर और पति के दर्शन करके व्रत तोड़ती हैं।
लेकिन इस व्रत के पीछे एक बहुत ही प्रेरणादायक और मार्मिक कथा है, जिसे सुनने और पढ़ने से इस व्रत का महत्व और बढ़ जाता है।



🌸करवा चौथ की प्राचीन समय की कथा – वीरवती की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक राज्य में एक राजा और रानी रहते थे। उनके सात पुत्र और एक कन्या थी, जिसका नाम वीरवती था। वीरवती अपने माता-पिता की सबसे प्यारी संतान थी। वह रूप में अत्यंत सुंदर, गुणों में श्रेष्ठ और सभी की प्रिय थी। जब वीरवती बड़ी हुई, तो उसका विवाह एक सुंदर, बुद्धिमान और वीर राजा से कर दिया गया।
विवाह के बाद वीरवती अपने पति के घर चली गई। वह अपने पति से बहुत प्रेम करती थी। कुछ समय बाद, जब करवा चौथ का पर्व आया, तो उसने पहली बार यह व्रत रखने का निश्चय किया।
🌼 करवा चौथ की व्रत का प्रारंभ
वीरवती अपने मायके में थी, और वहीं पर उसने अपनी सखियों और अन्य स्त्रियों के साथ मिलकर करवा चौथ का व्रत किया। उसने सुबह सूर्योदय से पहले सर्ग ग्रहण किया और पूरे दिन निर्जल व्रत रखा। लेकिन वीरवती बहुत कोमल स्वभाव की थी और भूख-प्यास सहन नहीं कर पा रही थी।
पूरा दिन बीत गया। दोपहर ढली, सूर्य अस्त हो गया, लेकिन चंद्रमा का अभी तक उदय नहीं हुआ था। वीरवती अत्यधिक कमज़ोर हो गई। उसके होंठ सूखने लगे, सिर घूमने लगा, और वह बार-बार बेहोश होने लगी।
💧 भाइयों का छल
वीरवती की यह हालत देखकर उसके सातों भाइयों से रहा नहीं गया। वे अपनी बहन को इतना कष्ट सहते नहीं देख सकते थे। उन्होंने सोचा कि किसी तरह अपनी बहन को कुछ खाने के लिए प्रेरित करें, लेकिन जब उन्होंने कहा कि “व्रत तोड़ दो,” तो वीरवती ने मना कर दिया। उसने कहा –
“जब तक मैं चाँद को देखकर अपने पति का मुख नहीं देख लूँगी, मैं व्रत नहीं तोड़ूँगी।”
भाइयों ने एक उपाय निकाला। उन्होंने एक पीपल के पेड़ के नीचे छलनी और दीपक की मदद से एक कृत्रिम चाँद बना दिया। उन्होंने वीरवती से कहा –
“देखो बहन! चाँद निकल आया है, अब व्रत तोड़ लो।”
भाइयों की बातों में आकर वीरवती ने वह झूठा चाँद देखा, और पति के दर्शन किए बिना ही जल ग्रहण कर लिया और कुछ खा लिया।
⚡ पति का संकट
जैसे ही वीरवती ने अन्न ग्रहण किया, उसी क्षण उसका पति दूर राजमहल में बेहोश होकर गिर पड़ा। कुछ ही क्षणों में उसकी मृत्यु हो गई। जब यह समाचार वीरवती को मिला, तो वह रोते-रोते मूर्छित हो गई। उसे समझ में आया कि उसने व्रत के नियमों का उल्लंघन किया है — चाँद के दर्शन बिना पति का मुख देखे और अन्न ग्रहण करना एक पाप माना गया।
🕉️ पति की रक्षा के लिए वीरवती का तप करवा चौथ
वीरवती ने अपने पति के शव के पास जाकर प्रण लिया कि —
“मैं तब तक अन्न और जल ग्रहण नहीं करूँगी, जब तक मेरे पति जीवित नहीं हो जाते।”
उसने पूरे वर्ष तक अत्यंत कठोर तपस्या की। दिन-रात भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने लगी। उसकी भक्ति और समर्पण देखकर माता पार्वती उससे प्रसन्न हुईं और उसके सामने प्रकट हुईं।
माता पार्वती ने कहा —
“पुत्री वीरवती, तुमने अत्यंत कठोर तपस्या की है। अब मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूँ कि तुम्हारा पति पुनः जीवित होगा। लेकिन याद रखो, भविष्य में जब भी तुम करवा चौथ का व्रत करो, विधि-विधान से, पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा से करो, कभी झूठा चाँद न देखो।”
यह कहकर माता पार्वती ने वीरवती को एक करवा (मिट्टी का पात्र) दिया और कहा कि इस पात्र में जल भरकर पति को जल अर्पित करना, तभी व्रत पूर्ण होगा।
🌕 करवा चौथ मैं चंद्रमा के दर्शन और पति का पुनर्जीवन
वीरवती ने माता पार्वती के आदेशानुसार उस करवे में जल भरा, पूजा की और चंद्रमा के दर्शन किए। इसके बाद उसने अपने पति का मुख देखा और व्रत तोड़ा।
जैसे ही उसने जल ग्रहण किया, उसी क्षण उसका पति जीवित हो उठा। दोनों ने माता पार्वती और भगवान शिव को धन्यवाद दिया और इस व्रत की महिमा का गुणगान किया।
तभी से करवा चौथ व्रत की परंपरा शुरू हुई —
जिसे हर सुहागन स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिए पूरे मन से करती है।
🌺 करवा चौथ की दूसरी कथा – सती सावित्री की कहानी
एक और प्रसिद्ध कथा सती सावित्री और सत्यवान की है। सावित्री ने भी अपने पति की रक्षा के लिए यमराज से मृत्यु तक संघर्ष किया।
सावित्री एक पतिव्रता स्त्री थी। उसके पति सत्यवान की मृत्यु नियति में तय थी। जब सत्यवान की मृत्यु हुई, तो यमराज स्वयं उसके प्राण लेकर जाने लगे। सावित्री ने यमराज का पीछा किया और उनसे अपने पति के प्राण वापस देने की प्रार्थना की।
यमराज ने कई बार उसे मना किया, परंतु सावित्री के अटल प्रेम, निष्ठा और व्रत की शक्ति से वे प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वरदान दिया कि —
“तुम्हारा पति जीवित रहेगा और तुम दोनों सौ वर्ष तक सुखी जीवन व्यतीत करोगे।”
यह कथा भी करवा चौथ व्रत की शक्ति और स्त्री के दृढ़ संकल्प को दर्शाती है।
🌼 करवा चौथ व्रत की धार्मिक विधि
- सुबह सर्ग (सरगी) – व्रत शुरू करने से पहले सास अपनी बहू को “सर्ग” देती है जिसमें फल, मिठाई, सूखे मेवे, वस्त्र और श्रृंगार की सामग्री होती है।
- निर्जल व्रत – सूर्योदय से लेकर चाँद निकलने तक स्त्रियाँ कुछ नहीं खातीं और न ही जल पीती हैं।
- शाम को करवा पूजा – महिलाएँ करवे में जल भरती हैं, दीपक जलाती हैं, माता गौरी, चंद्रदेव और गणेशजी की पूजा करती हैं।
- कथा सुनना – इस दिन करवा चौथ की कथा सुनना आवश्यक माना गया है।
- चाँद का दर्शन और व्रत का समापन – रात में जब चाँद निकलता है, तब स्त्रियाँ छलनी से चाँद और पति का चेहरा देखती हैं, फिर पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत तोड़ती हैं।
💞 करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह वैवाहिक जीवन की मजबूती, विश्वास और प्रेम का पर्व है।
यह स्त्री के समर्पण, त्याग और निष्ठा का प्रतीक है।
जो स्त्रियाँ यह व्रत पूरे श्रद्धा और नियम से करती हैं, उनके पति की आयु में वृद्धि, घर में सुख-शांति और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
🌸 करवा चौथ की भावना
इस व्रत के माध्यम से स्त्रियाँ यह संदेश देती हैं कि —
“हमारा प्रेम केवल सांसारिक नहीं, आत्मिक है।
हम अपने जीवनसाथी के लिए हर कठिनाई सह सकती हैं।”
करवा चौथ स्त्रियों की शक्ति, विश्वास और प्रेम का प्रतीक है —
जहाँ एक चाँद, एक छलनी, और एक दीपक,
सैकड़ों भावनाओं, विश्वासों और संस्कारों का संगम बन जाता है।
✨ करवा चौथ का समापन
आज भी जब रात्रि का चाँद आसमान में निकलता है और स्त्रियाँ छलनी से उसे निहारती हैं, तो वह दृश्य न केवल एक धार्मिक परंपरा होता है, बल्कि भारतीय नारी की शक्ति, प्रेम और अटूट समर्पण का जीवंत प्रतीक भी बन जाता है।
करवा चौथ की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्चे प्रेम में शक्ति होती है, और जब समर्पण सच्चा हो तो मृत्यु को भी हराया जा सकता है।
॥ जय माता पार्वती ॥
॥ करवा चौथ व्रत की हार्दिक शुभकामनाएँ ॥

