स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए !
प्रश्न 1.प्रत्येक नागरिक को पूर्णतः लगन एवं निष्ठा के साथ कार्य करना चाहिए ।
(अ) ईमानदारी
(ब) बेईमानी
(क) जल्दबाजी
(ड) धीरे-धीरे
उत्तर :(अ) ईमानदारी
प्रश्न 2.
वृद्ध ईसाई पादरी ने कहा
(अ) तुम बड़े आलसी हो
(ब) तुम भिखारी हो
(क) तुम ईमानदार बनो
(ड) तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते ।
उत्तर :
(ड) तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते ।
प्रश्न 3.
भगवान की मूर्ति की स्थापना करने के बाद –
(अ) उनके कहे अनुसार चलना चाहिए ।
(ब) मूर्ति की पूजा करनी चाहिए ।
(क) प्रचार-प्रसार करना चाहिए ।
(ड) पुजारीजी के आदेश का पालन करना चाहिए ।
उत्तर :
(अ) उनके कहे अनुसार चलना चाहिए ।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
लेखक को किस बात की खब्त है ?
उत्तर :
लेखक को खब्त इस बात का है कि जब वे किसी से मित्रता कर लेते है उसे सहृदय पाकर वे पूछ लेते हैं कि – ‘हमारा देश उन्नति क्यों नहीं कर रहा है?’
प्रश्न 2.
कुटुंब व्यवस्था किस प्रकार नष्ट हो गई ?
उत्तर :
हमारे देश में लोग खुद आगे रहना चाहते हैं किसी को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते, इस प्रकार उदारता का अभाव होने से कुटुंब व्यवस्था नष्ट हो गईं।
प्रश्न 3.
हम किसकी जय जयकार करते हैं ?
उत्तर :
हमारे देश में बड़े-बड़े नेता हो गए हैं, हम उनकी मूर्ति, की स्थापना करके उनका जय-जयकार करते हैं।
प्रश्न 4.
सच्चा देशभक्त कौन हैं ?
उत्तर :
जो अपना कर्तव्य ठीक प्रकार से करता है, वह सच्चा देशभक्त है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
हमारे देश में किस प्रकार जागृति आ सकती है ?
उत्तर :
हमारे देश के लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते हैं। इसके अलावा वे अपनी जिम्मेदारी भी नहीं समझते। यहाँ के लोग श्रम का महत्त्व नहीं पहचानते और स्वयं मेहनत करने से परहेज करते हैं। गुणी और जानकार लोगों में उदारता नहीं है। वे अपनी विद्या दूसरों को बताना नहीं चाहते। यदि इन बुराइयों को दूर कर दिया जाए, तो हमारे देश में जागृति आ सकती है।
प्रश्न 2.
मनुष्य समाज को संगठित करने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर :
मनुष्य-समाज को संगठित करने के लिए हमें अपने नेताओं द्वारा बनाए हुए मार्ग पर चलना चाहिए और उनके आदेशों के अनुसार अपने जीवन का संगठन करना चाहिए। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारा कार्यक्षेत्र चाहे छोटा हो या बड़ा, हम अपने हर काम ठीक प्रकार से करें। इससे हमारा व्यक्तिगत जीवन संगठित होगा। हमारा व्यक्तिगत जीवन संगठित हो जाने के बाद मनुष्य-समाज अपने आप संगठित हो जाएगा।
प्रश्न 3.
‘तुम लोगों में उदारता नहीं हैं’ – कथन का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
यहाँ ‘उदारता’ शब्द का आशय किसी को आगे बढ़ने देने, किसी को अपनी योग्यता दिखलाने का मौका देने, किसी के विकास का मार्ग अवरुद्ध न करने, अपनी विशिष्ट विद्या अपने जीते जी दूसरों को दे जाने, तथा जरूरतमंद को काम सिखाने आदि के बारे में उदार दृष्टिकोण रखने से है। हमारे देश के लोगों में यह उदारता नहीं होती। वे दूसरों को आगे नहीं बढ़ने देते। स्वयं ही आगे रहना चाहते हैं। गुणी नवयुवकों को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर नहीं देते। वे अपनी विधा भी किसी को नहीं सिखाते और वह उनके साथ ही खत्म हो जाती है। इससे देश और समाज का बड़ा नुकसान होता है और लोगों को उपयुक्त अवसर पाने से वंचित रह जाना पड़ता है।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के सविस्तार उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
ईसाई पादरी ने लेखक के प्रश्न का उत्तर किस प्रकार दिया ?
उत्तर :
ईसाई पादरी लेखक के विदेशी मित्र थे। उन्होंने लेखक के प्रश्न के उत्तर में कहा कि तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते। उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि यहां के लोगों की कथनी और करनी में बहुत फर्क होता है। वे नौकरी के लिए दरखास्त देते समय अतिशयोक्तिपूर्ण शब्दों का प्रयोग करते हैं।
अपने मालिक की शुभकामना की प्रतिज्ञा करते हैं। पर नौकरी मिलते ही वे अपनी जीविका को ही खराब समझने लगते हैं। वे अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर काम खराब करने के लिए षड्यंत्र रचने लगते हैं और मालिक को हैरान कर डालते हैं। अन्य देशों में लोग साधारण शब्दों में नौकरी के लिए दरखास्त देते हैं और जब स्थान मिल जाता है, तो वे बड़ी निष्ठा और लगन से काम करते हैं। हमें इस बात पर ध्यान देना जरूरी है।
प्रश्न 2.
वृद्ध सरकारी कर्मचारी ने लेखक के प्रश्न का उत्तर किन-किन उदाहरणों से समझाया ?
उत्तर :
वद्ध सरकारी कर्मचारी लेखक के मित्र थे। लेखक ने जब उनसे अपने देश के उन्नति न करने का कारण पूछा, तो उन्होंने उत्तर दिया कि आपके देश के लोगों में जिम्मेदारी की भावना नहीं है। लोग दूसरों के प्रति अपने कर्तव्य को नहीं जानते। लिए गए काम को पूरा करने का गुण लोग भूल गए हैं। इसलिए किसी को किसी पर विश्वास नहीं है। खाने की दावत हो, तो मेजबान को यह विश्वास नहीं होता कि मेहमान समय से आएँगे और मेहमान को यह विश्वास नहीं होता कि समय पर जाने से खाना मिल जाएगा।
गृहस्थ को यह विश्वास नहीं होता कि धोबी और दरजी वादे पर कपड़े दे जाएंगे और धोबी और दरजी को यह विश्वास नहीं होता कि उन्हें समय पर दाम मिल जाएंगे। रेलगाड़ी से यात्रा करनेवाले को विश्वास नहीं होता कि पहले से बैठे यात्री उसे स्थान देंगे और पहले से बैठे यात्रियों को यह विश्वास नहीं होता कि आनेवाला यात्री आने पर व्यर्थ का शोर नहीं मचाएगा। पैदल चलनेवाले को यह विश्वास नहीं होता कि आगे चलनेवाला व्यक्ति अपना छाता इस तरह खोलेगा कि छाते की नोक से उसकी आँख न फूट जाएगी।
आगे चलनेवाले व्यक्ति को यह विश्वास नहीं होता कि पीछेवाला व्यक्ति उसे धक्का नहीं देगा। किसी को किसी पर यह विश्वास नहीं कि केले, नारंगी का छिलका या सुई, पिन आदि इस तरह वह न छोड़ेगा, जिससे दूसरों को कष्ट पहुंचे। यहां के लोग अपनी तात्कालिक सुविधा देखते हैं। दूसरों के प्रति वे अपने कर्तव्यों का अनुभव नहीं करते।
प्रश्न 3.
एक बड़ी वृद्धा स्त्री ने प्रश्न का उत्तर किस प्रकार दिया ?
उत्तर :
एक बड़ी विदेशी महिला का लेखक के परिवार से बड़ा प्रेम था। उन्होंने अपने 40 वर्ष देश की विविध सेवाओं में लगा दिए थे और यहां के बारे में उनका अच्छा अनुभव था। लेखक के प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि भारत के लोगों में उदारता नहीं है। इसलिए वे खुद ही आगे रहना चाहते हैं और दूसरों को आगे नहीं बढ़ाते।
हमारे देश में अनेक गुणी नवयुवक हैं। वे इन नवयुवकों को अपनी योग्यता दिखाने का मौका नहीं देते। वे अपने गुण दूसरों को नहीं सिखाते और मरने के बाद उनका गुण व्यर्थ हो जाता है। यहाँ अंत तक पिता पुत्र को घर का काम नहीं बतलाता। इसके कारण अनेक कुटुंब नष्ट हो गए। देश में भी यही हालत है- बड़ा छोटों को काम नहीं सिखाता। इसका परिणाम यह हुआ है कि लोगों की प्रतिभा धरी की धरी रह जाती है और उसका उपयोग नहीं हो पाता। इस प्रकार अनेक आविष्कार, औषधियाँ और वैज्ञानिक लुप्त हो जाते हैं।
प्रश्न 4.
देश को कैसे नागरिकों की आवश्यकता है और क्यों ?
उत्तर :
किसी भी देश की उन्नति उसके गुणी, परिश्रमी, निष्ठावान, जिम्मेदार, उदार तथा विवेकशील नागरिकों पर आधारित होती है। हमारे देश को ऐसे सच्चे और ईमानदार नागरिकों की आवश्यकता है, जिनकी कथनी और करनी में अंतर न हो। वे जो काम लें, उसे निष्ठापूर्वक संपन्न करें। साथ ही उन्हें दूसरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास होना जरूरी है। प्रत्येक नागरिक को श्रम का महत्त्व समझना चाहिए और यह बात मानकर चलना चाहिए कि संसार में कठिन परिश्रम के बिना कभी किसी को कुछ नहीं मिलता है। संसार में जो भी बड़े हुए हैं, वे सब अथक परिश्रमी रहे हैं। देश को अथक परिश्रम करनेवाले नागरिकों की आवश्यकता है।
इसके अलावा नागरिकों में उदारता का गुण होना भी आवश्यक है। उनमें नवयुवकों को आगे बढ़ाने की उदारता होनी चाहिए। वे लोगों की काम सीखने में मदद करें। लोग ऐसे हों, जो अपने गुण, अपनी कला लोगों को देने में संकोच न करें। देश को ऐसे ही कर्मठ और उदार नागरिकों की आवश्यकता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए:
प्रश्न 1.
लेखक के पहले मित्र कौन थे?
उत्तर :
लेखक के पहेले मित्र वृद्ध ईसाई पादरी थे।
सही वाक्यांश चुनकर निम्नलिखित विधान पूर्ण कीजिए :
प्रश्न 1.
ईसाई पादरी के अनुसार …
(अ) हम ज्यों के त्यों पड़े हुए हैं।
(ब) हम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते।
(क) हम जिम्मेदारी नहीं समझते।
उत्तर :
ईसाई पादरी के अनुसार हम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते।
प्रश्न 2.
वृद्ध सरकारी कर्मचारी के अनुसार ..
(अ) हम लोग समय पर काम नहीं पूरा करते।
(ब) हम लोग अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते।
(क) हम लोग समय का स्वास्थ्य नहीं समझते।
उत्तर :
वृद्ध सरकारी कर्मचारी के अनुसार हम लोग अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते।
प्रश्न 3.
वृद्ध स्त्री के अनुसार ….
(अ) भारत के लोग बड़े आलसी है।
(ब) हम अपना धार्मिक आदर्श भूल गए हैं।
(क) भारत में लोग दूसरों को आगे नहीं बढ़ाते।
उत्तर :
वृद्ध स्त्री के अनुसार भारत में लोग दूसरों को आगे नहीं बढ़ाते।
सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
प्रश्न 1.
- एक प्रश्नः चार उत्तर’ पाठ के लेखक का नाम …………. है। (श्रीकांत, श्री प्रकाश)
- प्रत्येक नागरिक को पूर्णत: लगन एवं निष्ठा के साथ …………. से काम करना चाहिए। (आलस, ईमानदारी)
- …………. करनेवाला सच्चा देशभक्त है। (बलिदान, कर्तव्यपालन)
- व्यक्तिगत जीवन संगठित होने से …………. अपनेआप संगठित हो जाएगा। (विश्व, मनुष्य-समाज)
- पहले मित्र …………. हैं। (वृद्ध सज्जन, वृद्ध ईसाई पादरी)
- ‘तुम लोग जिम्मेदारी नहीं समझते’ यह वाक्य ………… ने कहा। (वृद्ध सरकारी कर्मचारी, वृद्ध सज्जन)
- अपने काम में …………. लेना चाहिए। (अभिमान, गर्व)
उत्तर :
- श्री प्रकाश
- ईमानदारी
- कर्तव्यपालन
- मनुष्य-समाज
- वृद्ध ईसाई पादरी
- वृद्ध सरकारी कर्मचारी
- गर्व
निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
लेखक के पहले मित्र कौन थे?
A. वृद्ध ईसाई पादरी
B. वृद्ध सरकारी कर्मचारी
C. प्रोफेसर
D. वृद्ध स्त्री
उत्तर :
A. वृद्ध ईसाई पादरी
प्रश्न 2.
हम अपनी परंपरा क्यों भूल गए हैं?
A. अज्ञान के कारण
B. लंबी दासता के कारण
C. आलस्य के कारण
D. निरक्षरता के कारण
उत्तर :
B. लंबी दासता के कारण
प्रश्न 3.
‘हम अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते’ यह वाक्य किसने कहा?
A. वृद्ध सरकारी कर्मचारी
B. वृद्ध ईसाई पादरी
C. एक स्त्री
D. बड़ी वृद्धा स्त्री
उत्तर :
A. वृद्ध सरकारी कर्मचारी
प्रश्न 4.
‘तुम लोगों में उदारता नहीं है।’ यह वाक्य किसका है?
A. बद्ध सरकारी कर्मचारी
B. वृद्ध ईसाई पादरी
C. वृद्धा स्त्री
D. विचारक
उत्तर :
C. वृद्धा स्त्री
व्याकरण
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए :
प्रश्न 1.
- खब्त – ………..
- मुल्क – ………..
- निर्भर – ………..
- उन्नति – ………..
- उपयुक्त – ………..
- दासता – ………..
- समष्टि – ………..
- मुसाफिर – ………..
- अस्पृश्य – ………..
- पितामही – ………..
- आविष्कार – ………..
- दत्तचित्त – ………..
- इति श्री – ………..
उत्तर :
- खब्त – धून
- मुल्क – देश
- निर्भर – आधारित
- उन्नति – प्रगति
- उपयुक्त – योग्य
- दासता – गुलामी
- समष्टि – समाज
- मुसाफिर – यात्री
- अस्पृश्य – अछूत
- पितामही – दादी
- आविष्कार – खोज
- दत्तचित्त – एकाग्र
- इतिश्री – समाप्ति
निम्नलिखित शब्दों के विरोधी शब्द लिखिए :
प्रश्न 1.
- गृहस्थ × …………..
- नौकर × …………..
- वृद्ध × …………..
- व्याकुल × …………..
- विश्वास × …………..
- प्रतिकूल × …………..
- परिश्रम × …………..
- साधारण × …………..
- संकुचित × …………..
- व्यक्तिगत × …………..
उत्तर :
- गृहस्थ × संन्यासी
- नौकर × मालिक
- वृद्ध × युवा
- व्याकुल × स्थिर
- विश्वास × अविश्वास
- प्रतिकूल × अनुकूल
- परिश्रम × आलस्य
- साधारण × असाधारण
- संकुचित × विस्तृत
- व्यक्तिगत × सामूहिक
निम्नलिखित संधि को जोड़िए:
प्रश्न 1.
- उत् + नति = …………….
- निः + चित = …………..
- कमल + ईश = ………….
- अन् + अर्थ = ……………
उत्तर :
- उत् + नति = उन्नति
- निः + चित = निश्चित
- कमल + ईश = कमलेश
- अन् + अर्थ = अनर्थ
निम्नलिखित संधि को छोड़िए :
प्रश्न 1.
- व्याख्यान – ………..
- पर्याप्त – ………..
- इत्यादि – ………..
- षड्यंत्र – ………..
- निश्चित – ………..
- व्याकुल – ………..
- सारांश – ………..
- देशांतर – ………..
- कमलेश – ………..
- निराश्रय – ………..
- अनर्थ – ………..
उत्तर :
- व्याख्यान = वि + आख्यान
- पर्याप्त = परि + आप्त
- इत्यादि = इति + आदि
- षड़यंत्र = षड़ + यंत्र
- निश्चित = निः + चित
- व्याकुल = वि + आकुल
- सारांश = सार + अंश
- देशांतर = देश + अंतर
- कमलेश = कलम + ईश
- निराश्रय = निः + आश्रय
- अनर्थ = अन् + अर्थ
निम्नलिखित शब्दसमूह के लिए एक शब्द लिखिए :
प्रश्न 1.
- किसी बात के लिए व्यापक सामूहिक प्रयत्न
- पत्नी के साथ
- लकड़ी से चीजें बनानेवाला
- जो विश्वास के योग्य न हो
- हिसाब-किताब लिखने की पुस्तक
- जितना जरुरी हो उतना
- जीने का साधन
- ईसाई धर्म का पुरोहित
- किसी व्यक्ति के विरुद्ध साजिश करना
- पिता की माता
- बहुत बढ़ा-चढ़ा कर
उत्तर :
- आंदोलन
- सपत्नीक
- बढ़ई
- अविश्वसनीय
- बही
- पर्याप्त
- जीविका
- पादरी
- षड्यंत्र
- पितामही
- अतिशयोक्तिपूर्ण
निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ देकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
प्रश्न 1.
- नाक में दम करना – ………
- काया पलटना – …….
- इति श्री समझना – ………..
- ज्यों को त्यों पड़े होना – ………….
- षड्यंत्र रचना – …………
- बाध्य करना – ………..
उत्तर :
- नाक में दम करना – बहुत परेशान करना वाक्य : बच्चों ने दादी माँ की नाक में दम कर दिया।
- काया पलटना – बहुत बड़ा परिवर्तन होना वाक्य : सम्राट अशोक ने अपने नगर की काया पलट दी।
- इति श्री समझना – अंत मान लेना वाक्य : मोहन ने अपने कारोबार में आए बहुत बड़े नुकसान के कारण इति श्री मान लिया।
- ज्यों को त्यों पड़े होना – उन्मत्ति न होना वाक्य : आलसी लोग ज्यों के त्यो पड़े रहते हैं।
- षड्यंत्र रचना – बुरा करने के लिए प्रयत्न करना वाक्य : दुश्मनों ने हमारे खिलाफ कई षड्यंत्र रचे पर वे नाकामयाब
- बाध्य करना – मजबूर करना वाक्य : माँ के बाध्य करने पर विजय पढ़ाई करने विदेश गया।
निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा लिखिए :
प्रश्न 1.
- चाहना – ……….
- चलना – ……….
- खराब – ……….
- अपना – ……….
- पुरुष – ……….
- मित्र – ……….
- बहुत – ……….
- गृहस्थ – ……….
- नौकर – ……….
- दुकानदार – ……….
- भक्त – ……….
- मिलाना – ……….
- भारत – ……….
- मेजबान – ……….
- वृद्ध – ……….
- मुसाफिर – ……….
- बड़ा – ……….
- उन्नत – ……….
- शिष्ट – ……….
उत्तर :
- चाहना – चाह
- चलना – चाल
- खराब – खराबी
- अपना – अपनापन
- पुरुष – पुरुषत्व
- मित्र – मित्रता
- बहुत – बहुतायत
- गृहस्थ – गृहस्थी
- नौकर – नौकरी
- दुकानदार – दुकानदारी
- भक्त – भक्ति
- मिलाना – मिलावट
- भारत – भारतीयता
- मेजबान – मेजबानी
- वृद्ध – वृद्धत्व
- मुसाफिर – मुसाफिरी
- बड़ा – बड़प्पन
- उन्नत – उन्नति
- शिष्ट – शिष्टता
निम्नलिखित शब्दों की कर्तृवाचक संज्ञा लिखिए :
प्रश्न 1.
- प्रचार – ……….
- लिखना – ……….
- भूलना – ……….
- धोना – ……….
- सीना – ……….
- मूर्ति – ……….
- दुकान – ……….
- सेवा – ……….
- आंदोलन – ……….
- प्रेम – ……….
- स्थापना – ……….
- शिक्षा – ……….
उत्तर :
- प्रचार – प्रचारक
- लिखना – लेखक
- भूलना – भुलक्कड़
- धोना – धोबी
- सीना – दर्जी
- मूर्ति – मूर्तिकार
- दुकान – दुकानदार
- सेवा – सेवक
- आंदोलन – आंदोलनकारी
- प्रेम – प्रेमी
- स्थापना – स्थापक
- शिक्षा – शिक्षक
निम्नलिखित शब्दों की विशेषण संज्ञा लिखिए :
प्रश्न 1.
- निश्चय – ……….
- व्यक्ति – ……….
- संगठन – ……….
- भारत – ……….
- धर्म – ……….
- गर्व – ……….
- दिन – ……….
- हृदय – ……….
उत्तर :
- निश्चय – निश्चित
- व्यक्ति – व्यक्तिगत
- संगठन – संगठित
- भारत – भारतीय
- धर्म – धार्मिक
- गर्व – गर्वित
- दिन – दैनिक
- हृदय – हार्दिक
निम्नलिखित समास को पहचानिए :
प्रश्न 1.
- शुभकामना
- ईसाई-मत
- आरंभशूर
- आदरसत्कार
- षड़यंत्र
- सात-आठ
- नवयुवक
- कार्यक्षेत्र
- मनुष्यसमाज
- प्रार्थना-पत्र
- दत्तचित्त
उत्तर :
- कर्मधारय
- तत्पुरुष
- तत्पुरुष
- द्वन्द्र
- द्विगु
- द्वन्द्व
- कर्मधारय
- तत्पुरुष
- तत्पुरुष
- तत्पुरुष
- बहुव्रीहि
एक प्रश्न : चार उत्तर Summary in Hindi
विषय-प्रवेश :
लेखक को यह प्रश्न अकसर कचोटता रहता है कि देश में कई विशेष पुरुषों के होने और बड़े-बड़े आंदोलन होने के बावजूद हमारा देश उन्नति क्यों नहीं कर रहा है। अवसर आने पर वे यह प्रश्न अपने उन विदेशी मित्रों से भी पूछने से नहीं झिझकते, जिने यहाँ रहते हुए देश के बारे में अच्छी जानकारी होती है। प्रस्तुत पाठ में यह सवाल उन्होंने अपने चार विदेशी मित्रों से पूछे हैं। चारों महानुभावों ने इस प्रश्न का उत्तर अपने-अपने ढंग से दिया है। इसका निष्कर्ष यह है कि देश तभी उन्नति कर सकता है जब सभी लोग पूरी ईमानदारी, लगन और निष्ठापूर्वक अपने काम करें।
पाठ का सार :
लेखक का खब्त : लेखक देश की दशा को लेकर चिंतित हैं। उन्हें इस बात की चिता है कि देश में कई विशेष पुरुष हैं और यहाँ कई बड़े-बड़े आंदोलन भी हुए हैं, फिर भी हमारा देश उन्नति क्यों नहीं कर रहा है? यह प्रश्न उन्हें परेशान करता रहता है। यही प्रश्न वे अपने उन विदेशी मित्रों से भी सुअवसर मिलने पर पूछ बैठते हैं, जो यहाँ लंबे अरसे से रह रहे हैं और काफी अनुभवी हैं। अपने विदेशी मित्रों से यह पूछना उनका खत बन गया है।
लेखक के पहले मित्र का मत : लेखक ने पहली बार अपने जिस विदेशी मित्र से यह सवाल पूछा, वे एक वृद्ध ईसाई पादरी थे। वे यहाँ लंबे अरसे से देश के दरिद्र लोगों की सामाजिक सेवा करते आ रहे थे। उन्होंने लेखक के प्रश्न के जवाब में कहा कि यहां के लोगों को अपने काम का गर्व नहीं है, इसलिए देश की उन्नति नहीं हो रही है। उनके अनुसार यहाँ के लोगों की कथनी और करनी में बहुत अंतर है।
वे उदाहरण के रूप में नौकरियों के लिए आवेदनपत्र करने और नौकरी मिलने पर गुट बनाकर मालिक के साथ दुर्व्यवहार करने की बात बताते हैं। वे कहते हैं कि यहाँ के लोग आवेदनपत्र में अपनी निष्ठा और मालिक की शुभकामना की प्रतिज्ञा करते हैं, पर नौकरी मिलते ही मालिक के खिलाफ षड़यंत्र रचने लगते हैं। अन्य देशों में लोग इस प्रकार का व्यवहार नहीं करते। वे साधारण शब्दों में प्रार्थनापत्र लिखते हैं और स्थान मिलने पर जान लड़ाकर काम करते हैं।
लेखक की सहमति : लेखक अपने पादरी मित्र की बात से सहमत हैं कि हमें अपने काम का गर्व नहीं है। वे कहते हैं कि हमारे देश की परंपरा में अपने काम का गर्व करने का आदेश है, पर हम उसे भूल गए हैं। इसका कारण है हमारी लंबी दासता। काम का गर्व करने की परंपरा पर ही आधारित है हमारे यहाँ का जातिभेद। आज भी लोग विशेष तिथियों पर अपने औजारों और बहियों की पूजा करते हैं। पर आज हम ‘स्वधर्म निधन श्रेयः’ (अपना कर्तव्य करते हुए मर जाना श्रेयस्कर है) का आदेश भूल गए हैं।
दूसरे मित्र का जवाब : लेखक ने अपने प्रश्न का जवाब जिन दूसरे विदेशी सज्जन से जानना चाहा, वे आई, सी. एस. (आई. ए. एस.) के सदस्य एक वृद्ध सरकारी कर्मचारी थे। उन्हें 30 वर्ष से अधिक यहाँ रहने का अनुभव है। उन्होंने लेखक के प्रश्न के जवाब में कहा कि देश के उन्नति न करने का कारण यहाँ के लोगों का अपनी जिम्मेदारी न समझना है। अर्थात उठाए गए काम को पूरा करने का गुण हम भूल गए हैं।
किसी को किसी पर विश्वास नहीं : पूर्व सरकारी कर्मचारी के अनुसार अपनी जिम्मेदारी न. समझने के कारण लोगों में अविश्वास की भावना घर कर गई है। किसी को यह विश्वास नहीं रह गया है कि उसका काम समय पर होगा अथवा काम करने पर उसे समय पर मेहनताना मिल पाएगा। किसी को किसी के व्यवहार के बारे में विश्वास नहीं है। हर व्यक्ति अपनी सुविधा देखता है। दूसरों के कष्ट की किसी को परवाह नहीं है। यह सब अपनी जिम्मेदारी न समझने का परिणाम है।
तीसरे व्यक्ति का जवाब : लेखक जिस तीसरे व्यक्ति से अपना प्रश्न पूछते है सात-आठ साल से भारतीय बनकर श्रद्धापूर्वक देश की सेवा कर रही महिला थी। उनके अनुसार देश के उन्नति न करने का कारण यहाँ के लोगों का आलसी होना है। कहने का अर्थ यह कि यहाँ के लोगों ने श्रम का महत्त्व नहीं पहचाना। यहाँ के लोग मेहनत करने में विश्वास नहीं रखते। इसलिए यहाँ के लोग किसी क्षेत्र में सफल नहीं होते।
चौथे व्यक्ति का मत : लेखक के प्रश्न का जवाब देनेवाला यह व्यक्ति एक विश्व प्रसिद्ध वृद्ध महिला थीं, जिन्होंने अपने 40 वर्ष विभिन्न सेवाओं में यहाँ खपायें थे। उनके अनुसार देश की उन्नति न होने का कारण यहाँ के लोगों में उदारता न होना है। लोगों में उदारता की भावना न होने के कारण लोग खुद ही आगे रहना चाहते हैं, दूसरों को आगे नहीं बढ़ने देते। इसलिए अनेक योग्य वैज्ञानिक आविष्कार एवं अनेक औषधियाँ लुप्त हो गई। अनेक गुणी लोगों ने अपने गुणों से दूसरों को परिचित नहीं कराया और अपने गुण अपने साथ लेकर स्वर्ग सिधार गए। कहने का अर्थ यह कि गुणी व्यक्ति नवयुवकों को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर नहीं देते।
लेखक का स्पष्टीकरण : लेखक अपने इन चारों विदेशी मित्रों के जवाब को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि हम ठीक समय से उपयुक्त काम न उठाकर अपने काम में गर्व नहीं करते। उस काम को करने में दूसरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अनुभव नहीं करते। हम अपने काम को भलीभांति समझकर उसमें तल्लीन होकर परिश्रम के साथ उसे खुद नहीं करते। हम अपने गुण उदारता के साथ दूसरों को नहीं सिखाते। इसलिए हम स्वयं अपनी बर्बादी कर रहे हैं।
लेखक इस बात को और सरल ढंग से बताते हुए कहते हैं कि हम नागरिक कर्तव्यों और अधिकारों को भूल गए हैं। हम बड़े-से-बड़े नेता के कहे अनुसार नहीं चलते। उनके आदेशों के अनुसार अपने जीवन का संगठन नहीं करते। यही कारण है कि हम वहीं के वहीं हैं। हमारा देश उन्नति नहीं कर रहा है।
एक प्रश्न : चार उत्तर शब्दार्थ :
- खब्त – धुन।
- सहृदय – दयालु, कोमलचित्त।
- संकोच – शर्म, हिचक।
- शिष्टता – भलमनसाहत।
- बाध्य – विवश।
- पादरी – ईसाई धर्म का पुरोहित।
- सपत्नीक – पत्नी सहित।
- सत्कार – (यहाँ अर्थ) सम्मान।
- गर्व – किसी काम के संबंध में सुखद भावना।
- अतिशयोक्ति – बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात।
- दरखास्त – आवेदन।
- विनय – नसता, प्रार्थना।
- प्रतिज्ञा – प्रण, पक्का निश्चय।
- जीविका – जीवन निर्वाह के लिए किया जानेवाला कार्य।
- षड्यंत्र – भीतरी चाल।
- मान-मर्यादा – सम्मान-सदाचार।
- दासता – गुलामी।
- श्रेयस्कर – उत्तम।
- गवर्नमेंटी – सरकारी।
- समष्टि – समूह।
- मेजबान – यजमान।
- तात्कालिक – तुरंत का।
- अविश्वसनीय – जिस पर विश्वास न किया जा सके।
- अस्पृश्य – अछूत।
- कायापलट – बहुत बड़ा परिवर्तन।
- उदारता – उदार होने का भाव।
- लुप्त – गायब, अदृश्य।
- प्रतिद्वंद्विता – मुकाबला करने की भावना।
- बीभत्स – घृणित।
- चित्त – मन, हृदय।
- व्याकुल – विकल।
- दत्तचित्त – किसी काम में खूब मन लगना।
- संगठन – व्यवस्थित करने का कार्य।
- व्याख्यान – भाषण।
- संकुचित – तंग, छोटा।
- स्वतः – स्वयं, अपने आप।
